डूब रहा था तो किनारे पे खड़ी थी दुनिया,
हंसने वालों में मेरा मुक़द्दर भी शामिल था..
रो रहा था जो ज़नाजे से लिपटकर मेरे,
कैसे कह दूं के वोही मेरा कातिल था ..
कभी आंसू तो कभी ख़ुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी..
उनकी नाराज़गी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी..
हंसने वालों में मेरा मुक़द्दर भी शामिल था..
रो रहा था जो ज़नाजे से लिपटकर मेरे,
कैसे कह दूं के वोही मेरा कातिल था ..
कभी आंसू तो कभी ख़ुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी..
उनकी नाराज़गी को हम क्या समझें,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी..
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